नालंदा की स्थापना

नालंदा की स्थापना गुप्त साम्राज्य के समय से मानी जाती है। इसी अवधि के दौरान कुमारगुप्त प्रथम (450 ई.) के संरक्षण में नालंदा की स्थापना हुई थी।

नालंदा का नाम कैसे पड़ा

शहर का नाम ना-आलम-दा से लिया गया है, जिसका अर्थ है देने में कभी न तृप्त होने वाला, यह उन नामों में से एक है जिससे भगवान बुद्ध जाने जाते थे।

विषयो पर ज्ञान

नालंदा विश्वविद्यालय में चिकित्सा, आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, गणित, व्याकरण, खगोल विज्ञान और भारतीय दर्शन जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।

विश्वविद्यालय के विद्वान शिक्षक

भारतीय गणितज्ञ और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ई. के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय के सम्मानित शिक्षकों में से एक थे।

नालंदा का प्रतीक

नालंदा' शब्द की उत्पत्ति नालम (कमल) या दा नालंदा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ज्ञान देने वाला

नालंदा विश्वविद्यालय पुस्तकालय

नालंदा में 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन पुस्तकालय थी जिसमे दुनिया भर का ज्ञान था और करीब नब्बे लाख किताबों का संग्रह।

नालंदा की विशेषता

नालंदा को पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है जहाँ कोरिया, जापान, चीन, मंगोलिया, श्रीलंका, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया सहित दुनिया भर से शिक्षा के लिए विद्वान आते थे।

विश्वविद्यालय की बर्बादी

इतिहासकार मिन्हाजू-एस सिराज के अनुसार, तुर्की सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी ने 1193 ई. में अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए ने नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया।

नालंदा को जलाया

गुप्तवंश के पतन के बाद भी सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा, लेकिन सनकी बख्तियार खिलजी लुटेरे ने नालंदा को जला कर इसके अस्तित्व को पूर्णत: नष्ट कर दिया।

नालंदा को नष्ट करने का कारन 

बख्तियार खिलजी को लगता था की भारतीय ज्ञान उसके मजहब के लिए खतरा साबित हो सकता है इसलिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया।